भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह पलाश के फूलने का समय है-1 / अनुज लुगुन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:05, 14 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुज लुगुन |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> जंगल में कोयल कू…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जंगल में कोयल कूक रही है
जाम की डालियों पर
पपीहे छुआ-हुई खेल रहे हैं
गिलहरियों की धमा-चौकड़ी
पंडुओं की नींद तोड़ रही है
यह पलाश के फूलने का समय है ।

यह पलाश के फूलने का समय है
उनके जूडे़ में खोंसी हुई है
सखुए की टहनी
कानों में सरहुल की बाली
अखाडे़ में इतराती हुई वे
किसी भी जवान मर्द से कह सकती हैं
अपने लिए एक दोना
हड़ियाँ का रस बचाए रखने के लिए
यह पलाश के फूलने का समय है ।

यह पलाश के फूलने का समय है
उछलती हुईं वे
गोबर लीप रही हैं
उनका मन सिर पर ढोए
चुएँ के पानी की तरह छलक रहा है
सरना में पूजा के लिए
साखू के पेड़ों पर वे बाँस के तिनके नचा रही हैं
यह पलाश के फूलने क समय है ।