भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह बात किसी से मत कहना / देवराज दिनेश

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:06, 26 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवराज दिनेश |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेरे पिंजरे का तोता
तू मेरे पिंजरे की मैना
यह बात किसी से मत कहना।

मैं तेरी आंखों में बंदी
तू मेरी आंखों में प्रतिक्षण
मैं चलता तेरी सांस–सांस
तू मेरे मानस की धड़कन
मैं तेरे तन का रत्नहार
तू मेरे जीवन का गहना!
यह बात किसी से मत कहना!!

हम युगल पखेरू हंस लेंगे
कुछ रो लेंगे कुछ गा लेंगे
हम बिना बात रूठेंगे भी
फिर हंस कर तभी मना लेंगे
अंतर में उगते भावों के
जलजात किसी से मत कहना!
यह बात किसी से मत कहना!!

क्या कहा! कि मैं तो कह दूंगी!
कह देगी तो पछताएगी
पगली इस सारी दुनियां में
बिन बात सताई जाएगी
पीकर प्रिये अपने नयनों की बरसात
विहंसती ही रहना!
यह बात किसी से मत कहना!!

हम युगों युगों के दो साथी
अब अलग अलग होने आए
कहना होगा तुम हो पत्थर
पर मेरे लोचन भर आए
पगली इस जग के अतल–सिंधु मे
अलग अलग हमको बहना!
यह बात किसी से मत कहना!!