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यह सच है / अखिलेश्वर पांडेय

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मेरे पिताजी कविताएं नहीं लिखाते
वे दादाजी के समान हैं जो कविताएं नहीं लिखते
वे दादी के समान हैं जो कविताएं नहीं लिखतीं
आपको आश्चर्य लगे पर यह सच है
मेरा कोई रिश्तेदार कविता नहीं लिखता

मेरे पिताजी के सिरहाने कविताएं नहीं होंती
न ही होती हैं उनकी डायरी या दराजों में
वे जब मेरे पास होते हैं
जानता हूँ कविताएं नहीं सुनाएंगे मुझे
नसीहतें देते हैं जिंदगी की
पर उनमें छुपा स्वार्थ नहीं होता

मेरे पिताजी में अच्छे गद्य के आसार हैं
पर उनका सारा लेखन जिंदगी के
हिसाब-किताब में खत्म हो जाता है
मैं जब भी मिलता हूँ
उनके पास इतना
इतना अधिक होता है
कहने-बताने के लिए।