भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यहाँ अभी भी कुछ बचा हुआ है-1 / तुषार धवल

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:40, 1 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुषार धवल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुम्बई. व्यस्त बांद्रा (वेस्ट) लिंकिंग रोड. अट्टालिकाएं. पूँजी की चमक. एक भूख गुमनाम इसीलिये अनदेखी. ‘सबसे तेज़ चैनल’ भी अंधा. ‘योर चैनल’ भी गायब. इस खबर पर कॉमर्शियल ब्रेक नहीं है. टी.आर.पी नहीं सनसनी भी नहीं, इसीलिये ‘चैन से सो’ जाओ.

मटियाओ!

कवि अकेला है. उसके पास ब्रेक का वक़्त नहीं. सनसनी भी नहीं.

‘जग सोवत हम जागें’!

समरथ को नहीं दोस गोसांईं!