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यही है आफियते रोज़गार की सूरत / सादिक़ रिज़वी

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यही है आफियते रोज़गार की सूरत
कि पैदा हो न कोइ खल्फेशार की सूरत

ज़माने वालों ने लूटा है हाथो हाथ मुझे
खिजाँ से पहले मिटा दी बहार की सूरत

नक़ाब उस ने उठाया न आँखें चार हुईं
मगर बसी है निगाहों में यार की सूरत

वह हुस्न कितना है पाकीज़ा जो गुनाह लगे
ज़रा भी सोचें जो बोसो कनार की सूरत

लहू तो दिल का बहुत हो के बह गया पानी
मगर न अश्क गिरे आबशार की सूरत

वह इश्क़ इश्क़ नहीं है हवस का परदा है
अगर न उसमें हो कोइ वेक़ार की सूरत

हर एक चेहरे पे 'सादिक़' है दूसरा चेहरा
ग़ुरूर को है पसंद इन्केसार की सूरत