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याद न कर मन, प्रीत पुरानी! / रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण'
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याद न कर मन, प्रीत पुरानी!
खुल जायेंगे घाव गुलाबी, बह जायेगा उर का पानी!
याद न कर मन, प्रीत पुरानी!
डूब गया रवि जा अस्ताचल-
बरसा रिमझिम कंचन का जल,
मन की प्राची में लाली की धुँधली-सी रह गई निशानी!
याद न कर मन, प्रीत पुरानी!
वे मधु के दिन कब के बीते-
लौटे मेघ, बरस, हो रीते!
खेत पक चुके अब गीतों के, सावन से कया आनी-जानी!
याद न कर मन, प्रीत पुरानी!
मन, वे दिन सोने-से अपने-
आज हुए नीलम के सपने!
भूलो रजत-स्वप्न की रातें; वे बातें हो गईं कहानी!
याद न कर मन, प्रीत पुरानी!
खुल जायेंगे घाव गुलाबी, बह जायेगा उर का पानी!
याद न कर मन, प्रीत पुरानी!