भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यादों की खुशबू से भरे हुए / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:13, 15 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कमरे में बैठकर
आओ, नदी-जंगल की बात करें
 
बाहर मीनारें हैं
सडकें हैं
ट्रैफिक का शोर है
शीशे के चेहरे हैं
पेचीदा गलियों के मोड़ हैं
 
खिड़की के पार
कभी दिखता था
आओ, उस पीपल की बात करें
 
बचपन से सुनते हैं
दूर कहीं
एक नदी बहती है
अपनी यह गली
सूखे की कथा रोज़ कहती है
 
सपनों में
जो झरना झरता है
आओ, उसके जल की बात करें
 
रेत के बगूलों से
घिरा हुआ
कमरा वह द्वीप है
जिस पर
जलपरियों के नाच हैं
शंख और सीप हैं
 
यादों की खुशबू से
भरे हुए
आओ, हम फिर कल की बात करें