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युद्ध जारी है / शिवनारायण जौहरी 'विमल'

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युद्ध जारी है
सत्य का झूठ से
प्रकाश का अन्धकार से
जीवन का मृत्यु से
विकारों का अंतरात्मा से
अपराध का कारागार से
आदमी का अहंकार से |

तुमने भेज तो दिया मुझको
भाल पर विजय की कामना
का टीका लगा कर
भेज तो दिया चल रहे संग्राम
में कौशल दिखाने के लिए
बिला यह बतलाए कि
कौन अपना है कौन पराया
किससे युद्ध करना है किससे नहीं
पर में स्वयं से भी
युद्ध करने के लिए तैयार हूँ |

मेरे सामने महारथियों की भीड है
और मै बिलकुल अकेला हूँ
इस चक्रव्यूह में
अभिमन्यू की तरह सभी
मेरे कवच कुंडल टूट गए हैं
तलवार छूट गई हाथ से
धनुष की प्रत्यंचा कट गई है
सारथी और अश्व घायल हो गए हैं
किन्तु यह रक्त रंजित तन
और आहत मन अभी हारे नहीं है
विजय का परचम लिए
में फिर खडा हूँ युद्ध जारी है |