भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यूँ तो कहने को हम उदू भी नहीं / नूर जहाँ 'सरवत'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:08, 27 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नूर जहाँ 'सरवत' |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <po...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यूँ तो कहने को हम उदू भी नहीं
हाँ मगर उस से गुफ़्तुगू भी नहीं

वो तो ख़्वाबों का शाह-ज़ादा था
अब मगर उस की जुस्तुजू भी नहीं

वो जो इक आईना सा लगता है
सच तो ये है के रू-ब-रू भी नहीं

एक मुद्दत में ये हुआ मालूम
मैं वहाँ हूँ जहाँ के तू भी नहीं

एक बार उस सें मिल तो लो ‘सरवत’
है मगर इतना तुंद-ख़ू भी नहीं