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यूँ तो मिलते हैं कई साथी / अशेष श्रीवास्तव

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यूँ तो मिलते हैं कई साथी
ज़िंदगी के सफ़र में
कुछ सफ़र लेकिन तन्हा
ही तय करने होते हैं...

यूँ तो मिलते हैं मशविरेकार
बहुत ज़िंदगी में
कुछ फैसले ज़िंदगी के मगर
ख़ुद ही करने होते हैं...

रस्ते बताने वाले तो खूब
मिलते हैं दुनियाँ में
कदम लेकिन मंज़िल तक
ख़ुद ही उठाने होते हैं...

कभी ज़्यादा कभी कम मिलते हैं
संघर्ष में साथ देने वाले
कुछ युध्द जीवनयात्रा में मगर
अकेले ही लड़ने होते हैं...

बहुत मिलते हैं झूठे प्रशंसक
और सच्चे आलोचक
सच्चे-झूठे के निर्णय लेकिन
ख़ुद ही करने होते हैं...

दर्द बाँटने वाले कम भले ही
सही मिलते ज़रूर हैं
कुछ दर्द ज़िंदगी के लेकिन
ख़ुद ही सहने होते हैं...

ख़ूबियों को देख तो पराये भी
पास आ जाते है
कमियों के साथ जो स्वीकारे
वही तो अपने होते हैं...

जैसा चाहते हैं दिखना जहाँ में
बनना वैसा आसाँ नहीं
लोभ, मोह, क्रोध, ईर्ष्या, स्वार्थ
सब त्यागने होते हैं...

बुरा कहें, बुरा करें न बुरा सोचें
भायें जो सब के मन को
मुश्किल हैं मिलना आजकल
ऐसे लोग कहाँ होते हैं...