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यूँ पवन, रुत को रंगीं बनाये / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"

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यूँ पवन, रुत को रंगीं बनाये
ऊदी-ऊदी घटा ले के आये

भीगा-भीगा-सा ये आज मौसम
गीत-ग़ज़लों की बरसात लाये

ख़ूब से क्यों न फिर ख़ूबतर हो
जब ग़ज़ल चाँदनी में नहाये

दिल में मिलने की बेताबियाँ हों
फ़ासला ये करिश्मा दिखाये

साज़े-दिल बज के कहता है ‘महरिष’
ज़िंदगी रक्स डूब जाए.