भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये कमरा काटने को दौड़ता है / जंगवीर सिंह 'राकेश'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:16, 25 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जंगवीर सिंह 'राकेश' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ग़ज़ल से रूठना महँगा पड़ा है;
ये कमरा काटने को दौड़ता है;
वो लड़की भोली सूरत वाली लड़की
अमां! वो शहर भर का मुद्द'आ है;
तुम्हारी पलकों पे ठहरा है कोई;
जो अंदर देखता है; झाँकता है;
वही इक शख़्स मेरी मंज़िलें भी;
वही इक शख़्स मेरा रास्ता है;
लहू रोता है मेरी आँखों से वो;
मेरी आँखों में जो ठहरा हुआ है;
मेरा मक़सद तुम्हें पाना नहीं है;
मेरा मक़सद मुहब्बत बाँटना है;
किसे समझा रहे हो पगले लड़के;
वो सब कुछ पहले ही से जानता है;