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ये सोचकर कि तेरी ज़वीं पर न बल पड़े / शहजाद अहमद

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ये सोचकर कि तेरी ज़वीं पर न बल पड़े
बस दूर ही से देख लिया और चल पड़े

ऐ दिल तुझे बदलती हुई रुत से क्या मिला
पौधों में फूल और दरख्तों में फल पड़े

सूरज सी उसकी तबा है शोला सा उसका रंग
छू जाये उस बदन को तो पानी उबल पड़े