भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रँगा सियार / बालस्वरूप राही

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:16, 23 जनवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालस्वरूप राही |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गीदड़ एक भाग जंगल से
गया शहर में, बीती शाम।
कहीं रखा था रँग भरा टब,
उसमें जाकर गिरा धड़ाम।
सबने समझ अनोखा प्राणी,
उसको झुक-झुक किया प्रणाम।
बारिश आई रंग धुल गया,
पोल खुल गई, बिगड़ा काम।