भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रंग है री / अजन्ता देव

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:23, 1 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कैसी आंधी चली होगी रात भर
कि उड़ रही है रेत ही रेत अब तक

असंख्य पदचिन्हों की अल्पना आंगन में
धूम्रवर्णी व्यंजन सजे हैं चौकियों पर
पूरा उपवन श्वेत हो गया है
निस्तेज सूर्य के सामने उड़ रहे हैं कपोत

युवतियाँ घूम रही हैं
खोले हुए धवल-केश
वातावरण में फैली है
वैधव्य की पवित्रता
कोलाहल केवल बाहर है
आज रंग है री माँ! रंग है री।