Last modified on 25 सितम्बर 2009, at 14:07

रक्त में खिला हुआ कमल/ केदारनाथ सिंह

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:07, 25 सितम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरी हड्डियाँ
मेरी देह में छिपी बिजलियाँ हैं
मेरी देह
मेरे रक्त में खिला हुआ कमल

क्या आप विश्वास करेंगे
यह एक दिन अचानक
मुझे पता चला
जब मैं तुलसीदास को पढ़ रहा था