भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रक्तचाप / प्रताप सहगल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:42, 10 अक्टूबर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सारी शर्म छोड़
और सारे बन्धन तोड़
घूमने लगा है ख़ून
शिराओ मे
कि जैसे तेज़ वाहन
दौड़ रहा हो
स्पीड-ब्रेकरो से भरी सड़को पर

प्रेम से काटता है यह विषभरा नाग
और वहीं कही सो जाता है
ख़ून की झाड़ियो मे

मैने सब्ज़ी वाले से पूछा
तुमने सुना है इस नाग का नाम
वह सब्ज़ी के भाव बताने लगा

ड्बलरोटी वाले से पूछा
तो वह मक्खन दिखाने लगा

एक मैकेनिक से पूछा मैने
उसने औज़ार मेरे सिर पर पटक दिए

पूछा एक मजूर से
उसने सिर पर दो ईटे और रखी
और फटाफट बनती इमारत पर चढने लगा

एक बद्धिजीवी से भी पूछ लिया
वह हल्के सा मुस्कराया
फिर एक झोला दिखाया

दरअसल हम दोनो उसी झोले मे बन्द है

झोले मे कर लिए मैने सुराख़
वही से कभी सब्ज़ी वाले को
कभी मजूर को देखता हूँ
नाग है कि झोले मे
सूराख़ों के बावजूद
जमा है झोले के अन्दर ही।