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रणू रौत (रावत) / भाग 2 / गढ़वाली लोक-गाथा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तेरो आज मेरा द्यूर<ref>देवर</ref> नाश होण,
तिन त बोले दिदा माल दूण मरीगे।
तब राणी उन्डू<ref>नीचे</ref> देखदी फुण्डू<ref>उधर</ref>,
झंक्रू सेकुली<ref>सन्दूक</ref> बन्द करील।
रणू धाई लगौन्द राणी राणी-
मेरा वास्ता राणी अमल<ref>तम्बाकू</ref> भन्याल।
मैं छऊँ राणी नौ बेली<ref>दिन</ref> को भूको,
मैंक बणौ राणी निरपाणी की खीर।
दई दूद जु छयो खैली छौ झंकरुन,
तैन छंछेड़ी<ref>छाँछ का</ref> पकैले अर बोले-
आवा स्वामी भोरजन होइगे।
रणू रौत देखद छँछेड़ी को थाल,
तैका सिर का बाल खड़ा होइ गैन।
मैं माल की दूण ही केक<ref>क्यों</ref> नी मन्यो?
मैंक तई रांड केक पकाए खट्ठो भोजन?
रणू रौत न खैंचे शमशेर,
आज रांड का टुकड़ा टुकड़ा करदौं।
झंकरु तब कम्पण लैगे थरथर
सेकूली<ref>सन्दूक</ref> को तालो खकटाणा<ref>खटकने</ref> लैगे।
तब पूछन्द रणू रौत भिमला,
सेकुली पर तिन क्या चीज छ धरे?
सेकुली पर स्वामी बिराली का बच्चा।
भ्वां गाड दौं मेरी राणी, ऊँ दूद भात खलौला।
जनो कदों रणू सेकुली पर मार,
झंक्रू भायीक ओबरा<ref>नीचे की मंजिल</ref> लूकद।
ओबरा रन्दी छई राणी अमरावती-
तब झंक्रू नानी का खुटू<ref>पैरों</ref> मा पड़द,

अलै जांदू<ref>बलैय्या को</ref> बलै नानी मैं सनी<ref>बड़बड़ाता</ref> बचौ।
राणी अमरावती तब वै लुकौन्दी।
बबराँदो-खलांदो रणू रौत तब,
पौछन्द मां का मास।
बतौ मेरी जिया मेरी जनानी को जार।
यख नी आये कुई मेरा रणू,
त्वैन सुपिनो त नी देखे।
देखदौं कनी छन तेरी होई लाल आंखी,
केक<ref>क्यों</ref> तै तिन या तलवार हात लिने?
घर मू लड़नक होन्दो शेर।
जा मार खोड़<ref>गोट</ref> की लगोटी<ref>बकरा</ref>,
अपणी तरवार म्याना पर धर।
जनानी का खातिर तू भाई न मार,
तेरी पीठ सूनी होली।
भाई का खातिर राणी न मार,
तेरी सेज सूनी होली!
जु तू इनु छई वीर, मेरा रणू त सूण,
तुमारा बाबू की माँगणी बोलीं छै,
स्या राणी स्यूंसला।
आज तैंको डोला मेघू कलूणी छ लिजाणू।
सूण्या जिया<ref>माँ</ref> का बचन,
रणू रौत खड़ो होई गए-
तू इनु क्या बोनी मेरी माँ जी,
मेघू कलूनी मैं ज्यूंदा<ref>जीवित</ref> नी छोड़ौं।
तब झंक्रू भी वैका साथ ह्वेगे
दिवालीखाल सजीं छै बरात।
तख तौंन सब बराती मारी दिनेन।
मेघू कलूणी लुकी गए बोटगा<ref>झाड़ी</ref> का पेट।

झंक्रून बोले-दिदा, तमाखू खाण बैठ्याल।
भुला, बिराणो पाणी बैरी, राणी बैरी,
विराणो रस्ता बेरी होन्द।
हम यख मू तमाखू नी खांदा,
हम केकी डर छै दिदा,
जु तुमू छ त पीठी मिलैक बैठला, तू उण्डू<ref>इधर</ref> देख, मैं फुण्डू<ref>उधर</ref>।
मेघू कलूणी तोंका<ref>उन्हें</ref> तौं दोबणू<ref>घात में</ref> छौं,
तैन लुकीक एक बाण इनु मारे
जु रणू की छाती घुसे
झंक्रू की छाती भैर<ref>बाहर</ref> आये।
पकोड़ा सी दुये छेदेइ गेन,
हरीं आंखी ह्वैन तौंकी पिंगला केस,
दुयौं का पराण उडी गैन।
तब औन्द मेघू स्यूंसला का पास
मारदो लात वीं का डोला पर।
तब स्यूं सला इना बैन बोदी:
मैंन रन्त<ref>खबर</ref> नी दिने रैबार<ref>सन्देश</ref>,
जना अफू आई छया वो, उना अफू मरि गैन।
तुम छन मेरा सिर का भरता
पर अधर्मा न होयान।
यूं दुई मालू की गाति<ref>दाह-क्रिया</ref> करी देवा मुगति।
लगाये द्वि मालू को एकी बोज,
रवि छाला<ref>किनारे</ref> वैन ऊंकी<ref>उनकी</ref> चिता रंचे
देखदी रै हेरदी पैली स्यूंसला,
फेर छट उछले चिता बढ़ो गये,
द्वि मालू का बीच वा सती होई गये।
उण्डु हेरद फुण्डो मेघू कलूणी, यो मैक तैं क्या होये?
सेयूं सी जागे वो, चेत आयो?

शब्दार्थ
<references/>