भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रश्‍क अपनों को यही है हम ने जो चाहा मिला / हसन 'नईम'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:30, 27 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हकीम 'नासिर' }} {{KKCatGhazal}} <poem> रश्‍क अपनो...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रश्‍क अपनों को यही है हम ने जो चाहा मिला
बस हमीं वाक़िफ़ हैं क्या माँगा ख़ुदा से क्या मिला

जिस ज़मीं पे मेरा घर था क्या महल उट्ठा वहाँ
मैं जो लोटा हूँ तो ख़ाक-ए-दर न हम-साया मिला

देखिए कब तक मिले इंसान को राह-ए-नजात
लाख बरसों में तो वीराँ चाँद को रस्ता मिला

हर सफ़र इक आरज़ू है वर्ना सैर-ए-दश्‍त में
किस को शह-ज़ादी मिली है किस को शहज़ादा मिला

सब पुराने दाग़ दिल ही में रहे आख़िर ‘नईम’
हर नए दुख में न पिछले दुख से छुटकारा मिला