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रश्क अपनों को यही है हम ने जो चाहा मिला / हसन 'नईम'
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रश्क अपनों को यही है हम ने जो चाहा मिला
बस हमीं वाक़िफ़ हैं क्या माँगा ख़ुदा से क्या मिला
जिस ज़मीं पे मेरा घर था क्या महल उट्ठा वहाँ
मैं जो लोटा हूँ तो ख़ाक-ए-दर न हम-साया मिला
देखिए कब तक मिले इंसान को राह-ए-नजात
लाख बरसों में तो वीराँ चाँद को रस्ता मिला
हर सफ़र इक आरज़ू है वर्ना सैर-ए-दश्त में
किस को शह-ज़ादी मिली है किस को शहज़ादा मिला
सब पुराने दाग़ दिल ही में रहे आख़िर ‘नईम’
हर नए दुख में न पिछले दुख से छुटकारा मिला