भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रस्मे वफा के वास्ते हर सुख भुला दिया / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:17, 23 अगस्त 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रस्मे वफ़ा के वास्ते हर सुख भुला दिया
मैंने तो जिंदगी का इक-इक पल लगा दिया।

इतनी भी इनायत तो मगर कम नहीं है दोस्त
गिन गिन के मेरी हर ख़ता तूने बता दिया।

फिर आखिरी समय पे क्या शिकवा गिला करूँ
अच्छा किया जो तुमने मुझे फिर दगा दिया।

इतना दिया है और क्या देती दिवानगी
चाहत को मेरी उसने इबादत बना दिया।

पल भर को अपने आँसुओं को रोक कर सनम
देखा तुम्हें जो खुश तो मैने मुस्करा दिया।