Last modified on 16 सितम्बर 2008, at 14:40

राग-बोध / शलभ श्रीराम सिंह

212.192.224.251 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 14:40, 16 सितम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह }} औरत ने कहा मर्द ने कुछ भी नही...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

औरत ने कहा

मर्द ने कुछ भी नहीं सुना

मर्द ने कुछ भी नहीं कहा

औरत ने सुन लिया सब कुछ!


एक बच्चा

कि सपना औरत और मर्द का मिला-जुला

पूरा का पूरा आदमी बनकर खड़ा है!


औरत कुछ भी नहीं कह रही है

मर्द सब कुछ सुन रहा है

यहाँ तक कि औरत की साँसों में

साँस ले रही है चुप्पी को

सुगबुगाकर

सहस्रदल कमल बन गई है जो।