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रात अटकी है क़मर देखने वाले न गए / रवि सिन्हा

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रात अटकी है क़मर<ref>चाँद (the moon)</ref> देखने वाले न गए 
कैसे सिमटे ये बहर<ref>समुद्र (the sea)</ref> तैरने वाले न गए

देख तारीख़ के इस दौर में बेचैनी है
होशो-ज़िद रख्ते-सफ़र<ref>यात्रा के लिए सामान (things needed on a journey)</ref> पीठ पे डाले न गए

वो सदी थी कि इमारत बनी भी टूटी भी 
ये सदी है कि अभी ख़्वाब भी पाले न गए 

राख होना ही था आख़िर क’ तुख़्मे-आतिश<ref>आग के बीज (seeds of fire)</ref> में
रौशनी के ख़यालो-राज़ जो डाले न गए 

क्या शिकायत जो कायनात<ref>ब्रह्माण्ड (Universe)</ref> में क़हर बरपा 
हमसे इक दिल के हादसात<ref>दुर्घटनाएँ (accidents)</ref> तो टाले न गए

ज़ख़्मे-दिल खोल के बैठेंगें जो तन्हा होंगें
सामने उनके ही तोहफ़े वो निकाले न गए

बे-नियाज़ी<ref>निस्पृहता, उदासीनता (unconcern)</ref> मिरी अब नागवार है उनको
जिनसे वो साल लगावट के सँभाले न गए

इक धमाका था जो आलम<ref>संसार (world)</ref> की फुसफुसाहट है
और उनको है गिला दूर तक नाले<ref>पुकार (wails)</ref> न गए 

एक मासूम जली मुल्क के उस कोने में 
ता-अबद<ref>अनन्त काल तक (till eternity)</ref> क़ौम की हस्ती से ये छाले न गए 

शब्दार्थ
<references/>