भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राम के अस्तित्व की करोगे तलाश? / संजय तिवारी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:43, 17 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय तिवारी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अयोध्या
सर्वदा राम के साथ
उसकी डोर उन्ही के हाथ
वन हो या पहाड़
शांति हो या असुरो की दहाड़
नदी का तीर हो
या झरनों की ताल
जैसी प्रकृति वैसा हाल
यह केवल वनवास की पीड़ा नहीं
केवल जीवन की क्रीड़ा नहीं
कर्तव्य और मर्यादा
न कम न ज्यादा
सबसे बड़े संस्कार
सृष्टि का आभार
सृजन का संसार
सेवा का प्रसार
राम से बड़ी राम की मर्यादा
संलयन का इरादा
ऋषिकुलों का रक्षण
दर्शन का संरक्षण
कोशल से कानन
न बच सका दशानन
वही अयोध्या जहां राम
शेष समस्त वन अनाम
अयोध्या
कोई नगर नहीं
मानव सस्कृति का है नाम
मूलाधार हैं राम
 जगत्पति जगदीश
ब्रह्माण्ड के अधीश
कलियुग की अयोध्या
कलियुग की राजनीति
काल की चेतना में
कलियुग की रीति
कैसी हार और कैसी जीत
न कोई छत
न कोई भीत
न हवा, न गर्मी, न शीत
इस अराज में न देख सपने
मनुष्य हो
नहीं ला सकते रामराज
तुम्हारे वश का नहीं यह आज
तुम्हारे न्यायालयों की औकात क्या है मित्र
इनकी दीवारों पर देखो
लगे हैं किनके किनके चित्र
इन चित्रों के सहारे
राम के अस्तित्व की करोगे तलाश?
क्या ऐसी क्षमता है तुम्हारे पास?