भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राम लखन दोऊ भैया ही भैया / बुन्देली

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:01, 27 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

राम लखन दोऊ भैया ही भैया,
साधू बने चले जायं मोरे लाल।।
चलत-चलत साधू बागन पहुंचे।
मालिन ने लए बिलमाए मोरे लाल। राम लखन...
घड़ी एक छाया में बिलमायो साधू।
गजरा गुआएं चले जाओ मोरे लाल। राम लखन...
जब वे साधू तालन पहुंचे
धोबिन ने लए बिलमाए मोरे लाल। राम लखन...
चलत-चलत साधू महलन पहुंचे।
रानी ने लए बिलमाए मोरे लाल।
घड़ी एक छाया में बिलमायो साधू।
महलन के शोभा बढ़ाओ मोरे लाल। राम लखन...