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रेगिस्तान / अदोनिस / राजेश चन्द्र

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शहर विघटित हो चुके हैं,
और पृथ्वी एक छकड़े की तरह है
ग़र्दो-गुबार से लदी-फन्दी
सिर्फ़ कविता को मालूम है
कि कैसे जोड़े रखा जाए ख़ुद को
इस अन्तराल के साथ ।

इस घर का रास्ता नहीं, एक घेराबन्दी
और उसका घर एक क़ब्रिस्तान है ।
सुदूर, घर के ऊपर उसके
एक बेकल चान्द लटका हुआ
धूल के धागों से ।

मैंने कहा : यही रास्ता जाता है घर को,
उसने कहा : नहीं,
तुम नहीं जा सकते इससे होकर
और अपनी गोलियों के निशाने पर ले लिया मुझे ।
अच्छा है फिर तो, दोस्त और उनके घर
जितने भी हैं बेरुत के, वे सब मेरे हमराह हैं ।

राह लहू की — 
जिसके बारे में कहा था एक लड़के ने
फुसफुसाते हुए अपने दोस्त से :
कुछ भी बचा नहीं है आसमान में अब
सिवाय इन सुराख़ों के,
जिन्हें कहा करते हैं हम ‘सितारे‘ ।

शहर की आवाज़ थी बेहद नाज़ुक,
हवा तक मिला नहीं रही थीं अपने तारों को — 
शहर के चेहरे पर थी एक चमक
उस बच्चे की तरह जो सँजो रहा हो
साँझ के लिए अपने सपनों को
घुड़की दे रहा हो सुबह को
कि बैठ जाए वह बगल की कुर्सी पर आकर ।

उन्होंने ढूँढ़ निकाला लोगों को बोरियों में :
एक जन बिना सिर का
एक जन बिना हाथों या जीभ का
एक जन गला घोंट कर मारा हुआ
बाक़ियों के न आकार और न नाम ।
— तुम्हारा दिमाग़ ख़राब है ?
कृपया, मत लिखो इन चीज़ों के बारे में ।

किसी किताब का कोई पन्ना
बमों के अक्स हैं इसमें
एक-दूसरे पर पड़ते हुए
भविष्यवाणियाँ और मटमैली कहावतें
अक्स डालती हुईं एक-दूसरे पर
इसके भीतर
मठ अक्स डालते हुए
एक-दूसरे पर भीतर इसके
एक ग़लीचा वर्णाक्षरों से बना
उधड़ता हुआ सूत-दर-सूत
गिरता है चहरे पर शहर के
याददाश्त की सुइयों पर फिसलता हुआ ।
एक हत्यारा शहर की हवाओं में,
तैर रहा है इसके ज़ख़्म से होकर — 
इसका ज़ख़्म एक झरना है
जो थरथराता है इसके नाम की तरह — 
इसके नाम से रिसते लहू की तरह
और इस सबसे घिरे हुए हैं हम — 
घर छूट चुके हैं उनकी दीवारों के पीछे
और मैं भी अब कहाँ रहने वाला हूँ मैं ।

हो सकता है वह वक़्त आ ही जाए
जब आपमें से हर कोई क़बूल कर ले
गूँगे और बहरे की तरह जीना,
हो सकता है कि वे दे दें अनुमति आपको
बुदबुदाने की : मौत
और ज़िन्दगी
पुनर्जीवन
और शान्ति आपके लिए ।

हथेलियों की शराब से
रेगिस्तान की तनहाई तक... इत्यादि
उस सुबह से जो तस्करी करता है
ख़ुद के आँतों की और सोता है
विद्रोहियों की लाशों पर... इत्यादि
सड़कों से ट्रकों तक
फ़ौज़ियों से, फ़ौज़ों से... इत्यादि
आदमियों और औरतों की परछाईं से... इत्यादि
उन बमों से छिपे हैं जो एकेश्वरवादियों और क़ाफ़िरों की इबादतों में... इत्यादि
उस लोहे से जिससे रिसता है लोहा
और लहू खींचता है मांस से... इत्यादि
उन खेतों से जिनमें पसरा है गेहूँ,
और घास और कमेरे हाथ... इत्यादि
उन क़िलों से जिनके घेरे में है हमारा वज़ूद
और जो फेंकते हैं अन्धेरों के अम्बार
हमारे सिरों पर... इत्यादि
उन ख्यात मृतकों से
जो करते हैं उद्घोष जीवन का
राह दिखाते हैं हमारे जीवन को... इत्यादि
उस भाषण से जो कराता है जनसंहार
हत्याएँ और रेत डालता है गरदनों को... इत्यादि
अन्धेरों से अन्धेरों से अन्धेरों तक
मैं सांस लेता, छूता अपने शरीर को
तलाश करता ख़ुद को और तुमको
उनको और दूसरे लोगों को भी

और मैं टाँग देता हूँ अपनी मौत को
अपने चेहरे और भाषण के
इस रक्तस्राव के बीच... इत्यादि

तुम देख लोगे — 
उसका नाम लो
कहो कि तुमने गढ़ा है चेहरा उसका
बढ़ाओ अपना हाथ उसकी तरफ़
या मुस्कुराओ
या कहो कि मैं भी ख़ुश रहता था कभी
या कि मैं दुखी हुआ था एक बार
तुम देखोगे :
कि वहाँ अब कोई देश ही नहीं है ।

मौत ने बदल डाला है शहर की शक़्ल को — 
यह पत्थर किसी बच्चे का सिर है — 
और यह जो फैला है धुआँ,
यह निकला है मानव फेफड़ों से ।
हर चीज़ अपने निर्वासन को गाती हुई...
लहू का एक समुद्र — 
और क्या चाहते हो इन सुबहों से तुम
सिवाय इसके कि उनकी धमनियों से
बना लिया जाए पाल इस अन्धेरे में,
जनसंहारों के इस उमड़ते हुए ज्वार में ?

डटे रहना उसके साथ, मत छोड़ना उसे — 
वह बैठी है मौत को आग़ोश में लिए अपनी
मुड़ती है अपने अतीत की तरफ़
जहाँ क़ाग़ज़ के कुचले हुए पन्ने हैं ।

बचा लेना आखि़री तस्वीर
उसकी भौगोलिक अवस्थिति की — 
वह कुलाँचे भर रही है रेतीले मैदान में
जोश के एक सागर में गोते लगा रही है — 
उसकी देह पर निशान हैं
मानव की चीख़ों-कराहों के ।

बीज पर बीज डाले जाते हैं हमारी मिट्टी में — 
खेत पोषण करते हैं हमारे आख्यानों का,
रखवाली करते हैं इन लहुओं के रहस्य की ।
मैं बात कर रहा हूँ मौसमों की महक की
और बिजलियों की कौन्ध की आसमान में ।

टॉवर स्क्वेयर — (एक खुदाई
अपने राज़ बताती है
बमों से ध्वस्त हुए पुलों को...)
टॉवर स्क्वेयर — (एक याद
अपना आकार तलाशती है
धूल और आग के बीच...)
टॉवर स्क्वेयर — (एक खुला रेगिस्तान
हवाओं द्वारा चुना गया
और वमन किया हुआ... उनके द्वारा...)
टॉवर स्क्वेयर — (दिलक़श है
यह देखना कि लाशें चलती हैं पगडण्डी पर,
और उनके प्रेत किसी और के शरीर में
अपनी आहों को सुनने के लिए...)
टॉवर स्क्वेयर — (पश्चिम और पूरब
और फांसी के तख़्ते स्थापित करते हैं — 
शहीदों और आदेशों को...)
टॉवर स्क्वेयर — (एक हुजूम
क़ाफ़िलों का : लोहबान
और गोन्द अरेबिका और कस्तूरी
और मसाले जो आरम्भ करते हैं त्योहारों का...)

लाशें या कि सर्वनाश,
क्या यही है चेहरा बेरुत का ?
— और यह कोई घड़ियाल या कि चीत्कार ?
— कोई दोस्त ?
— तुम ? आ जाओ ।
क्या तुम सफ़र में हो ?
क्या तुम लौट आए हो ?
नया क्या कर रहे हो तुम ?
— एक पड़ोसी मार डाला गया है...।



एक खेल
— तुम्हारा पांसा एक लकीर पर है।
— ओह, महज एक इत्तिफ़ाक़।



परतें अन्धेरों की
भाषण खींचते हैं और अधिक भाषणों को ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र