भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लड़ीं बिलैया / सभामोहन अवधिया 'स्वर्ण सहोदर'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:49, 21 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सभामोहन अवधिया 'स्वर्ण सहोदर' |अन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शंकर के आँगन में आकर,
खों-खों करके कूद-फाँद कर।
आपस में दो लड़ीं बिलैयाँ,
बंधी थान पर भड़की गैया
भौंकी कुतिया, चौंकी बिटिया,
औंध गए हैं लोटे-लुटिया!
चूँ-चूँ करती चली छछुंदर,
चूहे छिपे बिलों के अंदर!
हिलीं कुंडियाँ डिगे किवाड़े,
गई चिंदिया उड़ पिछवाड़े।