भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लाज़िम है अपने आप की इमदाद कुछ करूँ / जॉन एलिया

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:30, 1 मार्च 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जॉन एलिया }} {{KKCatGhazal}} <poem> लाज़िम है अप...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लाज़िम है अपने आप की इमदाद कुछ करूँ
सीने में वो ख़ला है के ईजाद कुछ करूँ

हर लम्हा अपने आप में पाता हूँ कुछ कमी
हर लम्हा अपने आप में ईज़ाद कुछ करूँ

रू-कार से तो अपनी मैं लगता हूँ पाए-दार
बुनियाद रह गई पा-ए-बुनियाद कुछ करूँ

तारी हुआ है लम्हा-ए-मौजूद इस तरह
कुछ भी न याद आए अगर याद कुछ करूँ

मौसम का मुझ से कोई तक़ाज़ा है दम-ब-दम
बे-सिलसिला नहीं नफ़स-ए-बाद कुछ करूँ