भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लिहाज़ है कुछ न तुम ओ तू का / रविंदर कुमार सोनी

Kavita Kosh से
Ravinder Kumar Soni (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:08, 25 फ़रवरी 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लिहाज़ है कुछ न तुम ओ तू का
ये क्या सलीक़ा है गुफ़्तगू का

मिली मुहब्बत में सुर्ख़रूई
रहा न ग़म कोई आबरू का

मिला जो ज़हर ए ग़म ए मुहब्बत
तो रँग गहरा हुआ लहू का

नसीम की छेड़ है कली से
ये राज़ पिन्हाँ है रँग ओ बू का

ये हुस्न ए कामिल की बे हिजाबी
तो इक तमाशा है आरज़ू का

डुबो चुके कल जो अपनी किश्ती
उन्हें है ग़म आज आबजू का

रवि पे माइल न हो ज़माने
कि टूट जाएगा दिल अदू का