भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लेखक / स्वप्निल स्मृति / चन्द्र गुरुङ

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:23, 25 मई 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ठीक इस वक्त तो
मैं भी कुछ न कुछ लिखे बगैर नहीं रह सकता।

जब की
अखबार में साभार है
वही निरो और बाँसुरी की कहानी।
प्रेमी लिख रहे हैं
दूधिया पेड के पत्ते में तप् तप्
आजीवन ट्रैजेडी।
आँखे बन्द करके सिपाही लिख रहे हैं
गृहयुद्ध की दैनिकी
न्यायाधीश लैपटॉप में लय मिला रहे हैं–
श्रँखलामय फाँसियों की
तो
मैं भी कुछ न कुछ लिख रहा हूँ।

विक्षिप्त कुछ संवेदनाएँ
जिजीविषा के साथ राजीनामा लिख रहे हैं
डाकू लिख रहे हैं शान्ति के प्रतिवेदन
रंग भरकर उल्टा लटका दिया है
बच्चों ने प्यारे देश का कार्टून
जासूस नोट कर रहा है ठीक इसी वक्त
‘ब्लैक लिस्ट’में मेरा नाम
तो
खुद अनुमान लगाईए
मैं क्या लिख रहा हूँ।

धरती में खिंचे गये हैं–
जैसे नदियाँ, सर्पिल रास्ते
जैसे किसान खींचता है समतल बंजर में
‘भर्जिन’ लकीर हल से
मेघ गर्जने पर क्षितिज में जैसे
युगीन हस्ताक्षर करती है बिजली
ज़रूर मैं कुछ न कुछ लिख रहा हूँ।