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लोग पीछे थे मेरे हाथ में पत्थर लेकर / अनिरुद्ध सिन्हा

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लोग पीछे थे मेरे हाथ में पत्थर लेकर
मैं कहाँ भागता शीशे का बना घर लेकर

प्यास सहरा में बुझा देंगे ये मेरे आँसू
मैं तेरे साथ हूँ आँखों में समुंदर लेकर

ऐसे हालात में जज़्बात भी मर जाते हैं
लोग मिलते हैं जहाँ हाथ में खंज़र लेकर

फिर चिराग़ों को बुझा दे न हवाओं का जुनून
घर में बैठे रहे सब रात का ये डर लेकर

ये मुहब्बत का सफ़र तनहा सफ़र रहता है
कौन चलता है यहाँ साथ में लश्कर लेकर