भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वंशज / ओमप्रकाश वाल्‍मीकि

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:32, 1 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओमप्रकाश वाल्‍मीकि |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दीवार बनकर खड़े हैं दुःख
चुभते हैं विषैले शूल की तरह
रिसता है लहू जल-प्रपात-सा
थकी-हारी देह से
'नियति' के बहाने
 
अच्छा प्रपंच रचा है तुमने
ज़ख़्मों से पटे चेहरे
अब पहचाने नहीं जाते
अरे, अब तो मान लो
किस सभ्यता के वंशज हो तुम!