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वक़्त के साँचें में ढलना है तुझे / जंगवीर सिंंह 'राकेश'
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वक़्त के साँचें में ढलना है तुझे
गिरना भी है औ'र संभलना है तुझे
इज़्तिराब-ए-ग़म<ref>ग़म की चिंंता</ref> नहीं करना है अब
जीना है ख़ुद के लिए जीना है अब
दास्तान-ए-दिल सुनाए भी तो क्या?
इश्क़ का हर मौज़ू कहना है अब !!
इश्क़ की लहरों पे चलना है तुझे
वक़्त के साँचें में ढलना है तुझे !!
आसमानों का सफ़र तय करना है
अपनी धुन में जीना है औ'र मरना है
बादलों पर इक कहानी लिखनी है
गोया<ref>सुवक्ता, बोलने वाला</ref> तेरी ज़िन्दगानी लिखनी है
फ़ैज़<ref>सुन्दरता, स्वतंत्रता</ref> की बाहों में पलना है तुझे
वक़्त के साँचें में ढलना है तुझे