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वतन तुम्हारे साथ है / शंकरलाल द्विवेदी

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वतन तुम्हारे साथ है

सीमा पर धरती की रक्षा में कटि-बद्ध सिपाहियों।
हर मज़हब क़ुर्बान वतन पर, वतन तुम्हारे साथ है।।

चढ़ कर आने वाले वैरी को देना चेतावनी,
'गीता' और 'क़ुरान' साथ हैं, ‘घर-द्वारे’ हैं छावनी।
बूढ़ा नहीं हिमालय, उसका यौवन तो अक्षुण्ण है,
संयम का यह देश, यहाँ का बच्चा-बच्चा 'कण्व' है।।
मसि से नहीं, रक्त से जिसका रचा गया इतिहास हो,
बहुत असंभव कण क्या, उसका अणु भी कभी उदास हो।
जिस पर जनम धन्य होने को ललचाए अमरावती,
उषा-निशा, रवि-शशि के स्वर्णिम मंगल-घट हों वारती।।

'रक्षा-बंधन’ जैसा मंगलमय त्यौहार मने जहाँ,
कोई नहीं अकेला, सब के साथ करोड़ों हाथ हैं।।

माथा दुखे अगर पूरब का, अँखियाँ भरें पछाँह की,
बाट जोहता रहता सागर, हिमगिरि के प्रस्ताव की।
प्राणाधिक प्रिय हमें रही है, माँटी अपने देश की,
अनुमति लेनी होगी आँधी को भी यहाँ प्रवेश की।।
बलि को पर्व समझने वाले अपने भारत-वर्ष का-
देखें- कौन 'केतु' ग्रसता है, बालारुण उत्कर्ष का?
‘स्वर्गादपि गरीयसी जननी-जन्मभूमि’ जिनको रही-
कोटि-कोटि आशीष स्वर्ग से देते हैं तुमको वही।।

अपनी संगीनों से तुमने गाथा जो लिख दी वहाँ-
कल-कल स्वर से गाते-रमते अविरल धवल प्रपात हैं।।