भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वर्णसंकर / लैंग्स्टन ह्यूज़ / विनोद दास

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:57, 12 अगस्त 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 मेरे पिता गोरे थे
और मेरी बूढ़ी माँ थी काली
अगर मैंने कभी अपने पिता को बद्दुआ दी हो
तो मैं अपनी बद्दुआ वापस लेता हूँ ।

अगर मैंने कभी अपनी काली बूढ़ी माँ को
नरक में जाने के लिए बद्दुआ दी हो,
तो उस घटिया कामना के लिए मुझे अफ़सोस है
और अब मैं उसके सुखी होने की कामना करता हूँ ।

मेरे पिता की मौत
एक बड़े आलीशान मकान में हुई,
मेरी माँ झोपड़ी में मरी ।
मैं सोचता हूँ कि मैं कहाँ मरूँगा
जो न गोरा है
और न ही काला ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास