भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वर्तमान / संतोष मायामोहन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:50, 20 जुलाई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँ
मेरे पास बैठी
बीन रही है धनिये के दाने
(तिनके, कंकड़)
कर रही है भावों-अभावों की गणना
सआत- सआत ।

माँ,
हर महीने लाती है
महीने भर का राशन
और हर महीने दोहराती है
यही... कि यही बात ।

अनुवाद : मोहन आलोक