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वह संगीत सदा मेरे चतुर्दिक् / वाल्ट ह्विटमैन / दिनेश्वर प्रसाद

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नहीं सुना था मैंने वह सँगीत जो सदा मेरे चतुर्दिक, अविराम, अनादि, तब भी
बहुत पहले से अनसीखा-सहज था,
किन्तु अब वह समूहगान मैं सुनता हूँ और आनन्दाभिभूत हूँ,
मैं प्रभात की प्रसन्न धुनों के साथ शक्ति और स्वास्थ्य के साथ ऊपर उठता हुआ ।
एक सबल पुरुष स्वर सुनता हूँ,
विशाल तरँग शिखरों पर रह-रह कर प्रसन्नता से सन्तरण करता एक उच्च स्वर,
विश्व के नीचे और उससे होकर काँपता हुआ एक सुमधुर पारदर्शी तल,
सब पर छाता हुआ स्वर-समवेत, मधुर वंशी ध्वनियों और वायलिनों के साथ
शवयात्रा के शोक गीत — मैं इन सबों को अपने भीतर भरता हूँ,
मैं केवल ध्वनि के आयतनों को ही
नहीं सुनता हूँ, मैं सूक्ष्म अर्थों से स्पन्दित होता हूँ,
मैं अन्दर और बाहर लिपटे हुए विभिन्न स्वर सुनता हूँ
जो प्रबल ओज के साथ भावावेग में एक दूसरे से
आगे निकल जाने के लिए प्रयत्न और होड़ कर रहे हैं ।
मुझे ऐसा नहीं लगता कि वादक अपने को जानते हैं,
किन्तु मैं अब यह सोचता हूँ कि मैं उन्हें जानने लगा हूँ ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : दिनेश्वर प्रसाद

लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
                Walt Whitman
      That Music Always Around Me

That music always round me, unceasing, unbeginning, yet long
untaught I did not hear,
But now the chorus I hear and am elated,
A tenor, strong, ascending with power and health, with glad notes
of daybreak I hear,
A soprano at intervals sailing buoyantly over the tops of immense waves,
A transparent base shuddering lusciously under and through the universe,
The triumphant tutti, the funeral wailings with sweet flutes
and violins, all these I fill myself with,
I hear not the volumes of sound merely, I am moved by the
exquisite meanings,
I listen to the different voices winding in and out,
striving, contending with fiery vehemence to excel each other in emotion;
I do not think the performers know themselves—but now I think
I begin to know them.