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विचारक / अनामिका अनु

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मैं विचारक —
नई सोचों-विचारों के पिटारे खोलूँगा,
“एक एक विचार” चमकते नए,
तुम्हारी अशर्फ़ियों को चुनौती देंगे,
तुम घबरा जाओगे,
उनकी अप्रतिम चमक देखकर तुम्हें लगेगा
कहीं तुम्हारी अनगिनत अशर्फ़ियों की चमक
फीकी न पड़ जाए,
नए विचारों की नई चमक के सामने ।

तुम डर जाओगे अशर्फ़ी के गिरते भाव
और
विचारों के गर्म बाज़ार से ।

तुम षड़यन्त्र करोगे
ताकि विचार लोगों तक न पहुँचे,
तुम विचार के पिटारे को सीलबन्द करोगे,
समुद्र में फेंक दोगे, जला दोगे,

पर मस्तिष्क के विचार विद्युत
घर-घर में ज्ञान के तार के साथ जाऐगी,
और फक्क से जला देगी अन्धेरे घर में
सौ वाट का बल्ब !