भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विद्या की जो बढती होती, फूट ना होती राजन में / गुमानी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:33, 24 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= गुमानी }} {{KKCatKavita}} <poem> विद्या की जो बढ़ती होती, फूट न …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विद्या की जो बढ़ती होती, फूट न होती राजन में।
हिंदुस्तान असंभव होता बस करना लख बरसन में।
कहे गुमानी अंग्रेजन से कर लो चाहो जो मन में।
धरती में नहीं वीर, वीरता दिखाता तुम्हें जो रण में।