भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विनय / सियाराम शरण गुप्त

Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:00, 3 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>है यह विनय …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

है यह विनय वारंवार
दीनता वश हम न जावें दूसरों के द्वार।
यदि किसी से इष्ट हो साहाय्य या उपकार।
तो तुम्ही से हे दयामय, देव, जगदाधार।
यदि कभी सहना पड़े दासत्व का गुरुभार।
तो तुम्हारा ही हमें हो दास्य अंगीकार।
यदि कभी हम पर करो तुम क्रोध का व्यवहार।
भक्तिपूर्वक तो सदा वह हो हमें स्वीकार।
यदि कभी हमको मिले आनन्द हर्ष अपार।
भूल कर भी तो प्रभो! हम तुम्हें दे न विसार।