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विनय 4 / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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वाजिगर पूतरी को काह आपनो चलाव, जैसे ही फिरावे सो ते साइ नाच नाचिये।
कोइ ना करत धरु देखत अनेक नरु, दीनानाथ दया करु कैसे काल बाँचिये।
दवो तन मन प्रान सकल जहान जान, सोइ करे त्रान वात धरनि है साँचिये।
जेते सान मद माँह काहु को न साका रहो, दीनबन्धु! तेरे विनु और काहि याचिये॥17॥