भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विस्मृत मित्र के लिए कुछ पंक्तियाँ-1 / शुभा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:02, 26 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शुभा |संग्रह=}} <Poem> सबसे पुराने मित्र हैं हम और इस...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सबसे पुराने मित्र हैं हम और इसके बारे में
सबसे पुरानी है हमारी विस्मृति
यहाँ तक कि यह जो निरानंद है उसे
कहते हैं हम जीवन
कारोबार ख़ूब फैला है ऊर्जा का उत्पादन बढ़ रहा है और
पानी के लिए तरसते हुए हम कहते हैं मज़बूरी है
हम अकेले हैं विस्मृति एक-दूसरे की नहीं
उसी आनन्द की विस्मृति है ये जिसे
हमारे साथ ने पैदा किया

यूँ एक-दूसरे को तो जानते हैं हम
बाज़ारों में टंगे हैं स्तन और
कटा हुआ लिंग तड़्प रहा है सार्वजनिक स्थलों पर
इस तरह यह बाज़ार चलता है

अब न्याय लेना है हमें
एक-दूसरे से ही लड़कर
यह न्याय इतना निरानंद क्यों है?