भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वीर जवान / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:40, 18 जुलाई 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


लौहस्तम्भ-सा
खड़ा एक मानव
हाड़ कँपाती
जो शीत- शिशिर में
बर्फीली हवा,
रात- दोपहर में
चुभती धूप
या अंध तिमिर में
सहता जाता
इसमें भी तो हैं ही
संवेदनाएँ
इसे भी तड़पाती
हैं वेदनाएँ
यद्यपि, कालगति
किन्तु, तथापि
न विचलित होता
अश्रु बहाता,
न कभी भी रोता;
मातृभूमि के
उर- माल सजाने,
गौरव- मोती
साहस के धागे में
सदा पिरोता
विजय-इतिहास
अपने सारे
यह बलि चढ़ाता
रक्त-संबंध
है राष्ट्र-परिवार
इसका सारा,
भारत का महान
वीर जवान
कविता नित करे
दण्डवत प्रणाम.
-0-