Last modified on 5 नवम्बर 2009, at 13:33

वृथा / अरुण कमल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:33, 5 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जब उम्र कम थी
काले थे केश और आभा थी
पर मैं दुबला था बहुत
फिर उम्र बढ़ी
शरीर गोटाया आँखों को थाह मिली
पर कहाँ कैसे निबहना आता न था
अब जब उम्र हुई
जानता हूँ दाँव-पेंच शास्त्र कुल
पर साथ नहीं देह न थाह न आभा
कभी कच्चा कभी डम्भक कभी पुलपुल ।