भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वृद्ध असमय ही जवानी हो गई / चंद्रभानु भारद्वाज

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:34, 9 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्रभानु भारद्वाज |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> वृद्ध अस…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वृद्ध असमय ही जवानी हो गई;
ज़िन्दगी किस्सा कहानी हो गई।

रेत बनकर रह गई बहती नदी,
और जड़ चंचल रवानी हो गई।

वक्त का हर बोझ कन्धों पर लदा,
उम्र झुक झुक कर कमानी हो गई।

खाद पानी या हवा का है असर,
कैक्टस सी रातरानी हो गई।

रात करवट और दिन उलझन हुए,
एक बेटी जब सयानी हो गई।

बात परदे में ढंकी शालीन थी,
खुल गई तो छेड़खानी हो गई।

आपने दुखती रगों को जब छुआ,
पीर भी कितनी सुहानी हो गई।

जो न आई होंठ तक संकोचवश,
बात आंखों की जबानी हो गई।

देख 'भारद्वाज' नज़रों का कमाल,
बर्फ पिघली और पानी हो गई।