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वृद्ध मन / हरिवंश राय बच्चन / विलियम बटलर येट्स

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      मैंने सोचा था कि जवानी क़ायम रखने
                              को डम्बल-मुग्दर काफ़ी है,
      ये दुरुस्त रक्खेंगे तन को।

हाय किसी ने पहले ही ये क्यों न बताया
मन भी वृद्ध हुआ करता है ?

      आज धनी हूँ मैं शब्दों का, लेकिन औरत
      शब्दों से सन्तुष्ट हुई कब?
      मैं उसके मादक नयनों की मदिरा पीकर
      हो सकता बेहोश नहीं अब ।

हाय किसी ने पहले ही ये क्यों न बताया
मन भी वृद्ध हुआ करता है ?

      सच कहता हूँ, इच्छाओं की कमी नहीं है
      लेकिन मन है ठण्डा अब
      मैं समझा था आग उसी का तन फूँकेगी
      उसे चिता पर धर देंगे जब

क्योंकि बताया था न किसी ने यह पहले से
मन भी वृद्ध हुआ करता है ?

मूल अँग्रेज़ी से हरिवंश राय बच्चन द्वारा अनूदित

लीजिए अब पढ़िए यही कविता मूल अँग्रेज़ी में
              William Butler Yeats
                          A Song

I THOUGHT no more was needed
Youth to polong
Than dumb-bell and foil
To keep the body young.

O who could have foretold
That thc heart grows old?

Though I have many words,
What woman's satisfied,
I am no longer faint
Because at her side?

O who could have foretold
That the heart grows old?

I have not lost desire
But the heart that I had;
I thOught 'twould burn my body
Laid on the death-bed,

For who could have foretold
That the heart grows old?