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वे आँखें / आनंद कृष्ण

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गीत : वे आँखें ........

वे आँखें जितनी चंचल हैं उससे ज्यादा मेरा मन है .
वे आँखें जिनमें तिर आया जैसे सारा नील गगन है .
कभी लजातीं, सकुचातीं सी,
और कभी झुक-झुक जाती हैं .
मुझे देखती हैं वे ऐसे-
धड़कन सी रुक-रुक जाती है .
कह देती हैं सब भेदों को, मौन नहीं हैं, वे चेतन हैं .
वे आँखें जिनमें तिर आया जैसे सारा नील गगन है .
ह्रदय तंत्र को छेड़-छेड़ कर,
मधुर रागिनी वे गाती हैं .
मुझको मुझसे बना अपरिचित-
इंद्रजाल-सा फैलाती हैं .
आंखों ने रच डाला जैसे-एक अनोखा-सा मधुवन है .
वे आँखें जिनमें तिर आया जैसे सारा नील गगन है .
कुछ क्षण मेरे पास बैठ कर-
आँखें दूर चली जाती हैं .
सच कहता हूँ- मुझसे मेरी-
साँसें दूर चली जाती हैं .
आंखों के जाने पर जाना- आंखों में सारा जीवन है .
वे आँखें जिनमें तिर आया जैसे सारा नील गगन है .
इठलाती मदमाती आँखें-
कितना मुझको तरसाती हैं .
सच बोलो-! क्या इन आंखों को-
थोड़ी लाज नहीं आती है-?
वे आँखें क्या नहीं जानतीं-चार दिनों का यह यौवन है-?
वे आँखें जिनमें तिर आया जैसे सारा नील गगन है .