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व्यंजनाओं की ख़बर किसको यहाँ होती / राजेन्द्र गौतम

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व्यंजनाओं की ख़बर किसको यहाँ होती
आज तो है काटता पागल हुआ इतिवृत्त।

और कोई नाम कोई पा सके चाकू
बोलती जब सिर्फ़ अभिधा तेज़ उसकी धार
इस गली में चीर देगी रोशनी का तन
उस गली में हो गई है यह ऋचा के पार

पाल कर हैवानियत को तख़्त के नीचे
आदमी का ख़ून पीकर सन्त होते तृप्त।

पँख छितरे मन्दिरों मे उन कपोतों के
स्पर्श से जिनके पुलकता था कभी आकाश
दूर पश्चिम से उतरते टोल गिद्धों के
नोचने को बस्तियों की स्याह होती लाश

सिसकती सुनसान में अब तो हवा घायल
इस बगीचे में पड़ीं सब फूल कलियाँ ध्वस्त।

1982