भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शर हैं हम विपरीत दिशा के / कुमार शिव

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:36, 22 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार शिव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शर हैं हम विपरीत दिशा के
मिले गगन में इक पल ।

वहाँ शून्य में किसी जगह
अपने-अपने रस्ते पर
अपने सुख-दुख, संग-साथ
अपनी स्मृतियाँ लेकर
 
गुज़रे हैं हम बहुत पास से
लेकर मन में हलचल ।
 
मिलन हमारा निश्चित था
कड़की थी चाहे बिजली
चाहे चली तेज़ थी आन्धी
गरजी चाहे बदली

वर्तमान जी लेंगे हम फिर
हो जाएँगे ओझल ।

बहुत निकट थे इक-दूजे के
गर्म-गर्म उच्छवास
पलकों पर थे कभी सितारे
कभी लबों की प्यास

हमें ज्ञात है सफ़र हमारा
होगा यहाँ मुकम्मल ।