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शरारत है, शिकायत है, नज़ाक़त है, क़यामत है / समीर परिमल
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शरारत है, शिकायत है, नज़ाक़त है, क़यामत है
ज़ुबां ख़ामोश है लेकिन निगाहों में मुहब्बत है
हवाओं में, फ़िज़ाओं में, बहारों में, नजारों में
वही खुशबू, वही जादू, वही रौनक़ सलामत है
हया भी है, अदाएँ भी, कज़ा भी है, दुआएँ भी
हरेक अंदाज़ कहता है, ये चाहत है, ये चाहत है
वो रहबर है, वही मंज़िल, वो दरिया है, वही साहिल
वो दर्दे-दिल, वही मरहम, ख़ुदा भी है, इबादत है
ज़माना गर कहे मुझको दीवाना, ग़म नहीं 'परिमल'
जो समझो तो शराफ़त है, न समझो तो बग़ावत है