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शहर का बच्चा / रवीन्द्र दास
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शहर का बच्चा,
क़ायदे से पैदा होता है
क़ायदे में रहकर
क़ायदे की ज़िन्दगी जीता है
शहर का बच्चा
क़ायदे का बच्चा होता है।
क़ायदा सिर्फ़ पाबन्दी नहीं,
एक तालीम भी है
सिर्फ़ मज़बूरी नहीं,
एक गुर भी है।
शहर उसे समझा देता है
फ़ायदे के लिए क़ायदा कितना ज़रुरी होता है !
शहर का बच्चा ,
जान लेता है बचपन में ही
बेक़ायदा पैदा होने वाले की फ़ितरत
इन्हीं को देखकर
दिनों दिन संतुष्ट होता हुआ
काट लेता है अपना बचपन।
कई बार जब ,
नहीं रुचता है माँ-बाप का क़ायदा
अपना फ़ायदा सोचकर
आँखें बंद कर लेता है
शहर का बच्चा!